Hydrogen Bomb( हाइड्रोजन बम)
अमेरिकी वैज्ञानिक एडवर्ड टेलर को हाइड्रोजन बम का जनक कहा जाता है फादर ऑफ़ हाइड्रोजन बम के नाम से भी जाना जाता है।।
हाइड्रोजन बम का नाम तो आप सब लोगों ने सुना होगा हाइड्रोजन बम परमाणु बम का ही सुधरा हुआ रूप है ।। हाइड्रोजन बम परमाणु बम से 1000 गुना ज्यादा शक्तिशाली होता है ।। जब हाइड्रोजन बम का विस्फोट होता है।। तब इससे बहुत अधिक मात्रा में ऊर्जा निकलती है।।
हाइड्रोजन बम बनाने में हाइड्रोजन के समस्थानिक ड्यूटेरियम और ट्राइटिरियम का उपयोग किया जाता है।। हाइड्रोजन बम में परमाणुओं की संलयन अभिक्रिया से विस्फोट होता है इस संलयन के लिए बहुत ही उच्च ताप की आवश्यकता होती है ।।500,00,000° सें. की आवश्यकता पड़ती है।। जब परमाणु बम आवश्यक ताप उत्पन्न करता है।। तभी हाइड्रोजन परमाणु संलयित होते हैं।। इस संलयन से ऊष्मा और शक्तिशाली किरणें उत्पन्न होती हैं।। जो हाइड्रोजन को हीलियम में बदल देती हैं।।
1922 ई. में पहले पता लगा था । कि हाइड्रोजन परमाणु के विस्फोट से बहुत अधिक ऊर्जा उत्पन्न हो सकती है।। हाइड्रोजन बम में हाइड्रोजन के एटम आपस में जुड़ते हैं इसीलिए उसका नाम हाइड्रोजन बम रखा गया है।
हाइड्रोजन बम को चालू करने के लिए ऊर्जा छोटे परमाणु बम के धमाके से मिलती है, जो नाभकीय विखंडन की प्रक्रिया पर आधारित होता है।
परमाणु बम में यूरेनियम या प्लूटोनियम जैसे भारी तत्वों के नाभिक हल्के नाभिक में टूटते हैं। इससे जो ऊर्जा निकलती है वह अपने आप में ही काफी विध्वंसक होती है। इस ऊर्जा का उपयोग कर हाइड्रोजन बम काम करना शुरू करता है। नाभिकीय संलयन की इस प्रक्रिया में हल्के तत्वों के नाभिक जुड़ते हैं जिससे और अधिक ऊर्जा निकलती है।
20 किलोटन परमाणु विस्फोट से करीब आधा किमी चौड़ा आग का गोला बनता है। 1.6 किमी का दायरा तत्काल घातक रेडिएशन के प्रभाव में आ जाता है। इसके साथ ही करीब पांच किमी के दायरे में घातक शॉक वेव फैल जाती है। 20 किलोटन से अर्थ है कि 20 हजार टीएनटी का एक साथ धमाका होना। इतना बड़ा धमाका हिरोशिमा में हुआ था।
54 मेगा टन (5.40 करोड़ टीएनटी का धमाका) हाइड्रोजन बम का धमाका करीब 16 किमी चौड़ा आग का गोला बनाता है। घातक रेडिएशन का असर तत्काल 12.8 किमी से 19 किमी तक होता है। धमाका सैकड़ों वर्ग किमी इलाके में रखे बिना ढंके इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को उड़ा सकता है।
हले हाइड्रोजन बम का परीक्षण अमेरिका ने नवंबर 1952 में किया था. इस दौरान 10 हजार किलोटन के बराबर की ऊर्जा निकली थी. वहीं दूसरा परीक्षण रूस ने साल 1953 में किया था. ऐसे बमों को बनाने की क्षमता फिलहाल अमेरिका, रूस, फ्रांस, इंग्लैंड और चीन के पास है.
हाइड्रोजन बम का नाम तो आप सब लोगों ने सुना होगा हाइड्रोजन बम परमाणु बम का ही सुधरा हुआ रूप है ।। हाइड्रोजन बम परमाणु बम से 1000 गुना ज्यादा शक्तिशाली होता है ।। जब हाइड्रोजन बम का विस्फोट होता है।। तब इससे बहुत अधिक मात्रा में ऊर्जा निकलती है।।
हाइड्रोजन बम बनाने में हाइड्रोजन के समस्थानिक ड्यूटेरियम और ट्राइटिरियम का उपयोग किया जाता है।। हाइड्रोजन बम में परमाणुओं की संलयन अभिक्रिया से विस्फोट होता है इस संलयन के लिए बहुत ही उच्च ताप की आवश्यकता होती है ।।500,00,000° सें. की आवश्यकता पड़ती है।। जब परमाणु बम आवश्यक ताप उत्पन्न करता है।। तभी हाइड्रोजन परमाणु संलयित होते हैं।। इस संलयन से ऊष्मा और शक्तिशाली किरणें उत्पन्न होती हैं।। जो हाइड्रोजन को हीलियम में बदल देती हैं।।
1922 ई. में पहले पता लगा था । कि हाइड्रोजन परमाणु के विस्फोट से बहुत अधिक ऊर्जा उत्पन्न हो सकती है।। हाइड्रोजन बम में हाइड्रोजन के एटम आपस में जुड़ते हैं इसीलिए उसका नाम हाइड्रोजन बम रखा गया है।
हाइड्रोजन बम को चालू करने के लिए ऊर्जा छोटे परमाणु बम के धमाके से मिलती है, जो नाभकीय विखंडन की प्रक्रिया पर आधारित होता है।
परमाणु बम में यूरेनियम या प्लूटोनियम जैसे भारी तत्वों के नाभिक हल्के नाभिक में टूटते हैं। इससे जो ऊर्जा निकलती है वह अपने आप में ही काफी विध्वंसक होती है। इस ऊर्जा का उपयोग कर हाइड्रोजन बम काम करना शुरू करता है। नाभिकीय संलयन की इस प्रक्रिया में हल्के तत्वों के नाभिक जुड़ते हैं जिससे और अधिक ऊर्जा निकलती है।
20 किलोटन परमाणु विस्फोट से करीब आधा किमी चौड़ा आग का गोला बनता है। 1.6 किमी का दायरा तत्काल घातक रेडिएशन के प्रभाव में आ जाता है। इसके साथ ही करीब पांच किमी के दायरे में घातक शॉक वेव फैल जाती है। 20 किलोटन से अर्थ है कि 20 हजार टीएनटी का एक साथ धमाका होना। इतना बड़ा धमाका हिरोशिमा में हुआ था।
54 मेगा टन (5.40 करोड़ टीएनटी का धमाका) हाइड्रोजन बम का धमाका करीब 16 किमी चौड़ा आग का गोला बनाता है। घातक रेडिएशन का असर तत्काल 12.8 किमी से 19 किमी तक होता है। धमाका सैकड़ों वर्ग किमी इलाके में रखे बिना ढंके इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को उड़ा सकता है।
हले हाइड्रोजन बम का परीक्षण अमेरिका ने नवंबर 1952 में किया था. इस दौरान 10 हजार किलोटन के बराबर की ऊर्जा निकली थी. वहीं दूसरा परीक्षण रूस ने साल 1953 में किया था. ऐसे बमों को बनाने की क्षमता फिलहाल अमेरिका, रूस, फ्रांस, इंग्लैंड और चीन के पास है.
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